अंतरा भाग 2 – कक्षा 12 हिंदी (ऐच्छिक) काव्य खंड – जयशंकर प्रसाद: (क) देवसेना का गीत, (ख) कार्नेलिया का गीत – संपूर्ण सारांश, व्याख्या, प्रश्न और उत्तर
कक्षा 12 के हिंदी (ऐच्छिक) की पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 के काव्य खंड में शामिल जयशंकर प्रसाद की रचनाओं 'देवसेना का गीत' और 'कार्नेलिया का गीत' का विस्तृत सारांश और व्याख्या। इसमें कविताओं के भाव, राष्ट्रीय जागरण की झलक, भारतीय संस्कृति, तथा प्रश्न-उत्तर सहित अभ्यास शामिल हैं।
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पाठ-1 – जयशंकर प्रसाद: (क) देवसेना का गीत, (ख) कार्नेलिया का गीत
हिंदी साहित्य अध्याय: पूर्ण सारांश, जीवनी, कविताएँ, प्रश्न-उत्तर | एनसीईआरटी कक्षा 12 अंतरा भाग 2 नोट्स, उदाहरण, क्विज़ 2025
पूर्ण अध्याय सारांश एवं विस्तृत नोट्स - जयशंकर प्रसाद हिंदी एनसीईआरटी कक्षा 12 अंतरा भाग 2
यह अध्याय जयशंकर प्रसाद की दो प्रसिद्ध कविताओं 'देवसेना का गीत' और 'कार्नेलिया का गीत' पर आधारित है। इन कविताओं के माध्यम से प्रसाद जी ने राष्ट्रीय जागरण और भारतीय संस्कृति का चित्रण किया है। अध्याय में कवि की जीवनी, कविताओं का विश्लेषण, प्रश्न-अभ्यास, योग्यता-विस्तार और शब्दार्थ शामिल हैं।
अध्याय का उद्देश्य
- जयशंकर प्रसाद की जीवनी समझना।
- कविताओं का भावार्थ और साहित्यिक महत्व।
- राष्ट्रीयता और प्रकृति के चित्रण का विश्लेषण।
मुख्य बिंदु
- प्रसाद जी छायावाद के प्रमुख कवि हैं।
- कविताएँ उनके नाटकों से ली गई हैं।
- देवसेना का गीत: निराशा और राष्ट्रसेवा।
- कार्नेलिया का गीत: भारत की प्राकृतिक सौंदर्य।
जयशंकर प्रसाद की जीवनी - पूर्ण विवरण
- जन्म: 1889, काशी में।
- मृत्यु: 1937।
- शिक्षा: विद्यालयी शिक्षा केवल आठवीं कक्षा तक प्राप्त की। स्वाध्याय द्वारा संस्कृत, पाली, उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं तथा साहित्य का गहन अध्ययन किया। इतिहास, दर्शन, धर्मशास्त्र और पुरातत्व के प्रकांड विद्वान थे।
- व्यक्तित्व: अत्यंत सौम्य, शांत और गंभीर प्रकृति के व्यक्ति थे। परोपकार और आत्मस्तुति दोनों से सदैव दूर रहते थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।
- साहित्यिक योगदान: मूलतः कवि थे, लेकिन उन्होंने नाटक, उपन्यास, कहानी, निबंध आदि अनेक साहित्यिक विधाओं में उत्तम कोटि की रचनाओं का सृजन किया। प्रसाद-साहित्य में राष्ट्रीय जागरण का स्वर प्रमुख है। संपूर्ण साहित्य में विशेषकर नाटकों में प्राचीन भारतीय संस्कृति के गौरव के माध्यम से यह काम किया। उनकी कविताओं, कहानियों में भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों की झलक मिलती है।
- प्रमुख रचनाएँ:
- नाटक: अजातशत्रु, स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त, राजश्री, ध्रुवस्वामिनी।
- उपन्यास: कंकाल, तितली, इरावती (अपूर्ण)।
- कहानी संग्रह: आँधी, इंद्रजाल, छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप।
- निबंध संग्रह: काव्य और कला तथा अन्य निबंध।
- कविताएँ: झरना, आँसू, लहर, कामायनी, कानन कुसुम, प्रेमपथिक।
- विशेष: देवसेना का गीत स्कंदगुप्त नाटक से लिया गया है, जो निराशा और राष्ट्रसेवा की भावना व्यक्त करता है। कार्नेलिया का गीत चंद्रगुप्त नाटक से है, जो भारत की प्राकृतिक सौंदर्य की प्रशंसा करता है।
टिप: जीवनी को बिंदुवार पढ़कर आसानी से याद करें। प्रमुख रचनाओं की सूची बनाएँ और थीम्स को समझें।
देवसेना का गीत - पूर्ण पाठ एवं व्याख्या
आह! देवना मिली विदाई!
मैंने भ्रम-वश जीवन संचित,
मधुकरियों की भिक्षा लुटाई।
छलछल थे संध्या के जड़कण,
आंसू-से गिरते थे प्रतिक्षण।
मेरी यात्रा पर लेती थी–
नीरता अनंत अंगड़ाई।
श्रमित स्वप्न की मधुमाया में,
गहन-विषण्ण की तरङ्ग-छाया में,
पथिक उननिद्र श्रुति में किसने–
यह विहग की तान उठाई।
लगी सतृष्ण दृष्टि थी सबकी,
रही बचाए फिरती कबकी।
मेरी आशा आह! बालयी,
तूने खो दी सकल कमाई।
चढ़कर मेरे जीवन-रथ पर,
प्रलय चल रहा अपने पथ पर।
मैंने निज दुर्बल पद-बल पर,
उससे हारी-होड़ लगाई।
लौटा लो यह अपनी थाती
मेरी करुणा हा-हा खाती
विश्व! न संभलेगी यह मुझसे
इससे मन की लाज गँवाई।
बंध-वार व्याख्या
प्रथम बंध:
आह! देवना मिली विदाई! मैंने भ्रम-वश जीवन संचित, मधुकरियों की भिक्षा लुटाई।
व्याख्या: देवसेना अपने जीवन को व्यर्थ समझकर दुखी है। उसने भ्रम में जीवन के क्षणों को संचित किया, लेकिन वे मधुमक्खी की भिक्षा की तरह लुट गए। यह जीवन की क्षणभंगुरता और निराशा व्यक्त करता है।
द्वितीय बंध:
छलछल थे संध्या के जड़कण, आंसू-से गिरते थे प्रतिक्षण। मेरी यात्रा पर लेती थी– नीरता अनंत अंगड़ाई।
व्याख्या: संध्या के क्षण आंसू की तरह गिरते हैं, जीवन की यात्रा पर शांति अनंत आलस्य लेती है। यह जीवन की थकान और शून्यता दिखाता है।
तृतीय बंध:
श्रमित स्वप्न की मधुमाया में, गहन-विषण्ण की तरङ्ग-छाया में, पथिक उननिद्र श्रुति में किसने– यह विहग की तान उठाई।
व्याख्या: थके स्वप्न की मधुर माया में, गहन उदासी की लहरों की छाया में, नींदरहित यात्री की श्रुति में पक्षी की तान सुनाई देती है। यह आंतरिक संघर्ष और प्रकृति से संबंध दिखाता है।
चतुर्थ बंध:
लगी सतृष्ण दृष्टि थी सबकी, रही बचाए फिरती कबकी। मेरी आशा आह! बालयी, तूने खो दी सकल कमाई।
व्याख्या: सबकी प्यासी दृष्टि लगी है, पुरानी चीजों को बचाने की कोशिश। आशा बालिका की तरह कमाई खो देती है, निराशा व्यक्त।
पंचम बंध:
चढ़कर मेरे जीवन-रथ पर, प्रलय चल रहा अपने पथ पर। मैंने निज दुर्बल पद-बल पर, उससे हारी-होड़ लगाई।
व्याख्या: जीवन-रथ पर प्रलय सवार है, दुर्बल प्रयास से हार गई होड़। संघर्ष की व्यर्थता।
षष्ठ बंध:
लौटा लो यह अपनी थाती मेरी करुणा हा-हा खाती विश्व! न संभलेगी यह मुझसे इससे मन की लाज गँवाई।
व्याख्या: अपनी धरोहर लौटा लो, करुणा खा रही है। विश्व से शिकायत, लज्जा गँवाई।
समग्र विश्लेषण
- भाव: जीवन की व्यर्थता, दुख, राष्ट्रसेवा।
- शिल्प: अलंकार (उपमा, अनुप्रास); छंद मुक्त।
- थीम: प्रलय से संघर्ष; आंसू बहना।
कार्नेलिया का गीत - पूर्ण पाठ एवं व्याख्या
अरुण यह मधुमय देश हमारा!
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को
मिलता एक सहारा।
सरस तामरस गर्भ विभा पर,
नाच रही तरङ्ग-शिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर,
मंगल कुमकुम सारा!
लघु सुरधनु से पंख पसारे,
शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किये,
समझ नीड़ निज पारा!
बरसाती आँखों के बादल,
बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहराती अनंत की लहरें,
पाकर जहाँ किनारा!
हम वनभंग ले उषा सवेरे,
भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मंदिर मढ़ते रहते जब,
जागकर रजनी हारा!
बंध-वार व्याख्या
प्रथम बंध:
अरुण यह मधुमय देश हमारा! जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।
व्याख्या: भारत लालिमायुक्त मधुर देश है, जहाँ अज्ञात क्षितिज को सहारा मिलता है। देश की उदारता और सौंदर्य।
द्वितीय बंध:
सरस तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरङ्ग-शिखा मनोहर। छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुमकुम सारा!
व्याख्या: कमल के गर्भ में प्रकाश पर मनोहर लहरें नाच रही हैं। जीवन हरियाली पर छिटका, शुभ कुमकुम फैला। प्रकृति की जीवंतता।
तृतीय बंध:
लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे। उड़ते खग जिस ओर मुँह किये, समझ नीड़ निज पारा!
व्याख्या: छोटे इंद्रधनुष से पंख फैलाकर, शीतल मलय पवन के सहारे पक्षी उड़ते हैं, अपना नीड़ समझकर। भारत पक्षियों का घर।
चतुर्थ बंध:
बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल। लहराती अनंत की लहरें, पाकर जहाँ किनारा!
व्याख्या: वर्षा वाली आँखों के बादल करुणा से भरे, अनंत लहरें किनारा पाती हैं। करुणा और शांति का देश।
पंचम बंध:
हम वनभंग ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे। मंदिर मढ़ते रहते जब, जागकर रजनी हारा!
व्याख्या: उषा सुबह वनभंग लेकर सुख ढुलकाती है, मंदिर सजाते रहते जब रात हार जाती है। उषा का सौंदर्य और आध्यात्मिकता।
समग्र विश्लेषण
- भाव: देश सौंदर्य, प्राकृतिक वैभव।
- शिल्प: छंद, उपमा (तरङ्ग-शिखा)।
- थीम: भारत की पहचान; पक्षी/लहरें प्रतीक।
प्रश्न-अभ्यास - एनसीईआरटी समीक्षा
देवसेना का गीत
1- "मैंने भ्रमवश जीवन संचित, मधुकरियों की भिक्षा लुटाई" – पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
- देवसेना जीवन को व्यर्थ समझती है।
- भ्रम में क्षण संग्रह; भिक्षा जैसी लुटाई।
2- कवि ने आशा को बालयी क्यों कहा है?
- आशा नाजुक/बच्ची जैसी।
- खो दी सारी कमाई; निराशा।
3- "मैंने निज दुर्बल पद-बल पर, उससे हारी-होड़ लगाई" में 'दुर्बल पद बल' और 'हारी होड़' में निहित व्यंजना स्पष्ट कीजिए।
- दुर्बल: कमजोर प्रयास।
- हारी होड़: प्रलय से हार।
4- काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए: (क) श्रमित स्वप्न की मधुमाया ---------------- तान उठाई। (ख) लौटा लो -------------------------------- लाज गँवाई।
- (क) अलंकार: उपमा; भाव: रहस्य।
- (ख) अनुप्रास; भाव: करुणा।
5- देवसेना की हार या निराशा के क्या कारण हैं?
- प्रलय का सामना; कमजोरी।
- आशा/स्वप्न की व्यर्थता।
कार्नेलिया का गीत
1- कार्नेलिया का गीत कविता में प्रसाद ने भारत की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया है?
- प्राकृतिक सौंदर्य; सहारा/किनारा।
- उषा/बरसात का चित्रण।
2- "उड़ते खग" और "बरसाती आँखों के बादल" में क्या विशेष अर्थ व्यंजित होता है?
- खग: पक्षी प्रतीक भारत की ओर।
- बादल: करुणा जल।
3- काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए– हम वनभंग ले उषा सवेरे–भरती ढुलकाती सुख मेरे मंदिर मढ़ते रहते जब–जागकर रजनी हारा।
- अनुप्रास; भाव: उषा का सौंदर्य।
4- "जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा"–पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
- भारत सहारा देता।
5- कविता में व्यक्त प्रकृति-चित्रों को अपने शब्दों में लिखिए।
- अरुण देश; तरंगें/बादल/लहरें।
योग्यता-विस्तार - व्यावहारिक अभ्यास
1- भोर का दृश्य
- भोर के दृश्य को देखकर अपने अनुभव काव्य शैली में लिखें।
2- आंसू पढ़ें
- जयशंकर प्रसाद की कविता 'आंसू' पढ़ें।
3- कविता पठन
- जयशंकर प्रसाद की कविता 'हमारा प्रिय भारतवर्ष' तथा रामधारी सिंह दिनकर की कविता 'हिमालय के प्रति' का कक्षा में पाठन कीजिए।
शब्दार्थ एवं टिप्पणियाँ - पूर्ण शब्दकोष
देवसेना का गीत
- संचित - एकत्रित
- मधुकरियों - फूलों से रस एकत्र करने वाली मधुमक्खी की भिक्षा
- नीरता - शांति
- अनंत - अंतहीन
- श्रमित - थका हुआ
- मधुमाया - मधुर माया
- गहन-विषण्ण - गहन उदासी
- तरंग-छाया - लहरों की छाया
- पथिक - यात्री
- उननिद्र - नींद से रहित
- श्रुति - सुनने की शक्ति
- विहग - पक्षी
- सतृष्ण - प्यासी
- कबकी - कब की
- बालयी - बालिका
- प्रलय - विनाश
- दुर्बल - कमजोर
- पद-बल - पैरों की शक्ति
- होड़ - होड़
- थाती - धरोहर
- करुणा - दया
- लाज - लज्जा
कार्नेलिया का गीत
- अरुण - लालिमा युक्त
- मधुमय - मधुर
- अनजान - अज्ञात
- क्षितिज - क्षितिज
- सहारा - सहारा
- सरस - रसीला
- तामरस - कमल
- गर्भ - गर्भ
- विभा - प्रकाश
- तरंग-शिखा - लहर की चोटी
- मनोहर - मन को हरने वाली
- छिटका - छिटका हुआ
- हरियाली - हरियाली
- मंगल - शुभ
- कुमकुम - कुमकुम
- लघु - छोटा
- सुरधनु - इंद्रधनुष
- पंख - पंख
- शीतल - शीतल
- मलय - मलय पवन
- समीर - हवा
- खग - पक्षी
- नीड़ - घोंसला
- पारा - पार
- बरसाती - वर्षा वाली
- करुणा जल - दया का जल
- लहराती - लहराती हुई
- अनंत - अनंत
- वनभंग - जंगल का टूटना
- उषा - उषा
- सवेरे - सुबह
- ढुलकाती - बहाती
- मंदिर - मंदिर
- मढ़ते - सजाते
- जागकर - जागकर
- रजनी - रात
- हारा - हार गया
इंटरएक्टिव क्विज़ - जयशंकर प्रसाद मास्टर
10 एमसीक्यू पूर्ण वाक्यों में; 80%+ लक्ष्य। कविताएँ, जीवनी, थीम कवर।
त्वरित रिवीजन नोट्स एवं मेमोनिक्स
| उपविषय | मुख्य बिंदु | उदाहरण | मेमोनिक्स/टिप्स |
|---|---|---|---|
| जीवनी |
|
बहुमुखी। | 89-37 (जन्म-मृत्यु)। टिप: "स्वाध्याय सफलता"। |
| देवसेना का गीत |
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भ्रमवश जीवन। | DNP (दुख-निराशा-प्रलय)। टिप: "आंसू अश्रु"। |
| कार्नेलिया का गीत |
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अरुण देश। | DSPL (देश-सौंदर्य-प्रकृति-लहर)। टिप: "भारत वैभव"। |
| शब्दार्थ |
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मधुकरियों। | SNK (संचित-नीरता-क्षितिज)। टिप: "भाव शब्द"। |
समग्र टिप: पूर्ण स्कैन के लिए 89-37-DNP उपयोग (5 मिनट)। फ्लैशकार्ड: सामने (शब्द), पीछे (बिंदु + मेमोनिक)। दीवार रिवीजन के लिए तालिका प्रिंट। 100% अध्याय कवर – परीक्षाओं के लिए आसान!
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